सरसंघचालक श्री. मोहन राव भागवत द्वारा विजयादशमी उत्सव 2012 के अवसर पर दिये गये उद्बोधन का सारांश

Rashtriya Swayamsevak Sangh    24-Oct-2012
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बुधवार दिनांक 24 अक्तुबर 2012 

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आज के दिन हमें स्व. सुदर्शन जी जैसे मार्गदर्शकों का बहुत स्मरण हो रहा है। विजययात्रा में बिछुड़े हुये वीरों की स्मृतियाँ आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

विजयादशमी विजय का पर्व है। संपूर्ण देश में इस पर्व को दानवता पर मानवता की, दुष्टता पर सज्जनता की विजय के रूप में मनाया जाता है। विजय का संकल्प लेकर, स्वयं के ही मन से निर्मित दुर्बल कल्पनाओं ने खींची हुई अपनी क्षमता व पुरुषार्थ की सीमाओं को लांघ कर पराक्रम का प्रारंभ करने के लिये यह दिन उपयुक्त माना जाता है। अपने देश के जनमानस को इस सीमोल्लंघन की आवश्यकता है, क्योंकि आज की दुविधा व जटिलतायुक्त परिस्थिति में से देश का उबरना देश की लोकशक्ति के बहुमुखी सामूहिक उद्यम से ही अवश्य संभव है।
 
यह करने की हमारी क्षमता है इस बात को हम सबने स्वतंत्रता के बाद के 65 वर्षों में भी कई बार सिद्ध कर दिखाया है। विज्ञान, व्यापार, कला, क्रीड़ा आदि मनुष्य जीवन के सभी पहलुओं में, देश.विदेशों की स्पर्धा के वातावरण में, भारत की गुणवत्ता को सिद्ध करनेवाले वर्तमान कालीन उदाहरणों का होना अब एक सहज बात है। ऐसा होने पर भी सद्य परिस्थिति के कारण संपूर्ण देश में जनमानस भविष्य को लेकर आशंकित, चिन्तित व कहीं कहीं निराश भी है। पिछले वर्षभर की घटनाओं ने तो उन चिन्ताओं को और गहरा कर दिया है। देश की अंतर्गत व सीमान्त सुरक्षा का परिदृश्य पूर्णतः आश्वस्त करनेवाला नहीं है। हमारे सैन्य बलों को अपनी भूमि की सुरक्षा के लिये आवश्यक अद्ययावत शस्त्र, अस्त्र, तंत्र व साधनों की आपूर्ति, उनके सीमास्थित मोर्चों तक साधन व अन्य रसद पहुँचाने के लिये उचित रास्ते, वाहन, संदेश वाहन आदि का जाल आदि सभी बातों की कमियों को शीघ्रातिशीघ्र दूर करने की तत्परता उन प्रयासों में दिखनी चाहिए। इसके विपरीत, सैन्यबलों के मनोबल पर आघात हो इस प्रकार, सेना अधिकारियों का कार्यकाल आदि छोटी तांत्रिक बातों को बिनाकारण तूल देकर नीतियों व माध्यमो द्वारा अनिष्ट चर्चा का विषय बनाया गया हुआ हमने देखा है। सुरक्षा से संबंधित सभी वस्तुओं के उत्पादन में स्वावलंबी बनने की दिशा अपनी नीति में होनी चाहिए। सुरक्षा सूचना तंत्र में अभी भी तत्परता, क्षमता व समन्वय के अभाव को दूर कर उसको मजबूत करने की आवश्यकता ध्यान में आती है।
 
हमारी भूमिसीमा एवं सीमा अन्र्तगत द्वीपों सहित सीमा क्षेत्र का प्रबन्धन पक्का करने व रखने की पहली आवश्यकता है। देश की सीमाओं की सुरक्षा, उनके सामरिक प्रबंध व रक्षण व्यवस्था के साथ साथ, सुरक्षा की दृष्टि से अपने अंतरराष्ट्रीय राजनय के प्रयोग.विनियोग पर भी आजकल निर्भर होती है। उस दृष्टि से कुछ वर्ष पूर्व से एक बहुप्रतीक्षित नयी व सही दिशा की घोषणा "Look East Policy" नामक वाक्यप्रयोग से शासन के उच्चाधिकारियों से हुयी थी। दक्षिण पूर्व एशिया के सभी देशों में इस सत्य की जानकारी व मान्यता है कि भारत तथा उनके राष्ट्रजीवन के बुनियादी मूल्य समान है, निकट इतिहास के काल तक व कुछ अभी भी सांस्कृतिक तथा व्यापारिक दृष्टि से उनसे हमारा आदान प्रदान का घनिष्ट संबंध रहा है। इस दृष्टि से यह ठीक ही हुआ कि हमने इन सभी देशों से अपने सहयोगी व मित्रतापूर्ण संबंधों को फिर से दृढ़ बनाने का सुनिश्चय किया। वहां के लोग भी यह चाहते हैं। परन्तु घोषणा कितनी व किस गति से कृति में आ रही है इसका हिसाब वहां और यहां भी आशादायक चित्र नहीं पैदा करता। इस क्षेत्र में हमसे पहले हमारा स्पर्धक बनकर चीन दल बल सहित उतरा है यह बात ध्यान में लेते है तो यह गतिहीनता चिन्ता को और गंभीर बनाती है। अपनी आण्विक तकनीकी पाकिस्तान को देने तक उसने पाकिस्तान से दोस्ती बना ली है यह हम अब जानते हैं ही।

नेपाल म्यांमार श्रीलंका ऐसे निकटवर्ती देशों में भी चीन का इस दृष्टि से हमारे आगे जाना सुरक्षा की दृष्टि से हमारे लिये क्या अर्थ रखता है यह बताने की आवश्यकता नहीं है। इन सभी क्षेत्रों में भारतीय मूल के लोग भी बड़ी मात्रा में बसते हैं, उन के हितों की रक्षा करते हुये इन हमारे परम्परागत स्वाभाविक मित्र देशों को साथ में रखने की व उन के साथ रहने की दृष्टि हमारे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी होनी चाहिये।

परन्तु राष्ट्र का हित हमारी नीति का लक्ष्य है कि नहीं यह प्रश्न मन में उत्पन्न हो ऐसी घटनाएँ पिछले कुछ वर्षों में हमारे अपने शासन प्रशासन के समर्थन से घटती हुई सम्पूर्ण जनमानस के घोर चिन्ता का कारण बनी है। जम्मू कश्मीर की समस्या के बारे में पिछले दस वर्षों से चली नीति के कारण वहां उग्रवादी गतिविधियों के पुनरोदय के चिन्ह दिखायी दे रहे हैं। पाकिस्तान के अवैध कब्जे से कश्मीर घाटी के भूभाग को मुक्त करनाय जम्मू लेह.लद्दाख व घाटी के प्रशासन व विकास के भेदभाव को समाप्त करते हुये शेष भारत के साथ उस राज्य के सात्मीकरण की प्रक्रिया को गति से पूर्ण करनाय घाटी से विस्थापित हिंदू पुनश्च ससम्मान सुरक्षित अपनी भूमि पर बसने की स्थिति उत्पन्न करनाय विभाजन के समय भारत में आये विस्थापितों को राज्य में नागरिक अधिकार प्राप्त होना आदि न्याय्य जनाकांक्षा के विपरित वहां की स्थिति को अधिक जटिल बनाने का ही कार्य चल रहा है। राज्य व केन्द्र के शासनारूढ़ दलों के सत्ता स्वार्थ के कारण राष्ट्रीय हितों की अनदेखी करना व विदेशी दबावों में झुकने का क्रम पूर्ववत चल रहा है। इतिहास के क्रम में राष्ट्रीय वृत्ति की हिन्दू जनसंख्या क्रमशः घटने के कारण देश के उत्तर भूभाग में उत्पन्न हुयी व बढ़ती गयी इस समस्यापूर्ण स्थिति से हमने कोई पाठ नहीं पढ़ा है ऐसा देश के पूर्व दिशा के भूभाग की स्थिति देखकर लगता है।
 
असम व बंगाल की सच्छिद्र सीमा से होनेवाली घुसपैठ व शस्त्रास्त्र, नशीले पदार्थ, बनावटी पैसा आदि की तस्करी के बारे में हम बहुत वर्षों से चेतावनियाँ दे रहे थे। देश की गुप्तचर संस्थाएँ, उच्च व सर्वोच्च न्यायालय, राज्यों के राज्यपालों तक ने समय.समय पर खतरे की घंटियाँ बजायी थीं। न्यायालयों से शासन के लिये आदेश भी दिये गये थे। परंतु उन सबकी अनदेखी करते हुये सत्ता के लिये लांगूलचालन की नीति चली, स्पष्ट राष्ट्रीय दृष्टि के अभाव में गलत निर्णय हुये व ईशान्य भारत में संकट का विकराल रूप खड़ा हुआ सबके सामने है। घुसपैठ के कारण वहाँ पैदा हुआ जनसंख्या असंतुलन वहाँ के राष्ट्रीय जनसंख्या को अल्पमत में लाकर संपूर्ण देश में अपने हाथ पैर फैला रहा है। व्यापक मतांतरण के साये में वहां पर फैले अलगाववादी उग्रवाद की विषवेल को दब्बू नीतियाँ बार.बार संजीवनी प्रदान करती है। उत्तर सीमापर आ धड़की चीन की विस्तारवादी नीति का हस्तक्षेप भी होने की भनक वहाँ पर लगी है। विश्व की अल कायदा जैसी कट्टरपंथी ताकतें भी उस परिस्थिति का लाभ लेकर वहाँ चंचुप्रवेश करना चाह रही है। ऐसी स्थिति में अपने सशस्त्र बलों की समर्थ उपस्थिति व परिस्थिति की प्रतिकार में उभरा जनता का दृढ़ मनोबल ही राष्ट्र की भूमि व जन की सुरक्षा के आधार के रूप में बचे हैं। समय रहते हम नीतियों में अविलम्ब सुधार करें। ईशान्य भारत में तथा भारत के अन्य राज्यों में भी घुसपैठियों की पहचान त्वरित करते हुये तथा मतदाता सुची सहित ;राशन पत्र, पहचान पत्र आदिद्ध अन्य प्रपत्रों से इन अवैध नागरिकों के नाम बाहर कर देने चाहिये व विदेशी घुसपैठियों को भारत के बाहर भेजने के प्रबंध करने चाहिये। विदेशी घुसपैठियों के पहचान के काम में किसी प्रकार का गड़बड़झाला न हो यह दक्षता बरती जानी चाहिये। सीमाओं की सुरक्षा के तारबंदी आदि के दृढ़ प्रबंध व रक्षण व्यवस्था में अधिक सजगता से चैकसी बरतने के उपाय अविलम्ब किये जाने चाहिये। राष्ट्रीय नागरिक पंजी (National Register of Citizens) को न्यायालयों द्वारा स्पष्ट रूप से निर्देशित, जन्मस्थल, माता.पिता के स्थान अथवा मातामहों, पितामहों के स्थानों के पुख्ता प्रमाणों के आधार पर तैयार करना चाहिए। ईशान्य भारत के क्षेत्र में व अन्यत्र भी यह पूर्व का अनुभव है कि जनमत के व न्यायालय के आदेशों के दबाव में विदेशी नागरिकों अथवा संशयास्पद मतदाताओं [ voters] की  पहचान करने का दिखावा जब जब प्रशासन या शासन करने गया तब.तब बंगलादेशी घुसपैठियों को तो उसने छोड़ दिया व वहाँ से पीड़ित कर निकाले गये व अब भारत में अनेक वर्षों से बसाये गये निरुपद्रवी व निरीह हिन्दुओं पर ही उनकी गाज गिरी।

हम सभी को यह स्पष्ट रूप से समझना व स्वीकार करना चाहिए कि विश्वभर के हिन्दू समाज के लिये पितृभू व पुण्यभू के रूप में केवल भारत जो परम्परा से हिन्दुस्थान होने से ही भारत कहलाता है, हिन्दू अल्पसंख्यक अथवा निष्प्रभावी होने से जिसके भू.भागों का नाम तक बदल जाता है. ही है। पीड़ित होकर गृहभूमि से निकाले जाने पर आश्रय के रूप में उसको दूसरा देश नहीं है। अतएव कहीं से भी आश्रयार्थी होकर आनेवाले हिन्दू को विदेशी नहीं मानना चाहिये। सिंध से भारत में हाल में ही आये आश्रयार्थी हो अथवा बंगलादेश से आकर बसे हों, अत्याचारों के कारण भारत में अनिच्छापूर्वक धकेले गये विस्थापित हिन्दुओं को हिन्दुस्थान भारत में सस्नेह व ससम्मान आश्रय मिलना ही चाहिये। भारतीय शासन का यह कर्तव्य बनता है वह विश्वभर के हिन्दुओं के हितों का रक्षण करने में अपनी अपेक्षित भूमिका का तत्परता व दृढ़ता से निर्वाह करें।