जयपुर, 05 नवम्बर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जी ने कहा कि भारत का शास्त्रीय संगीत विश्व को सत्य, करुणा और पवित्रता की ओर ले जाता है। जहां विश्व में संगीत में मनोरंजन पक्ष पर ध्यान रखा जाता है वहीं हमारे देश में परंपरा से संगीत को सत्य, करुणा और पवित्रता उत्पन्न करने वाला माना जाता है। डॉ. भागवत जी ने रविवार को वैशाली नगर में स्थित चित्रकूट स्टेडियम में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विशाल "स्वर गोविंदम" कार्यक्रम को संबोधित किया |
सरसंघचालक जी ने कहा कि, हमारे संगीत की विशेषता के कारण ही संघ स्थापना के दो-तीन साल में ही कार्य पद्धति में संगीत को स्वीकार कर लिया गया था। गाने वाले और सुनने वालों में संस्कार होते हैं। सामूहिक स्वर में, सबके साथ रहने से संस्कार पैदा होता है, समस्वरता से समरसता का भाव पैदा होता है। हम विविधता में एकता को देखें, इसलिए प्रांगणिक संगीत और वादन का चलन संघ में हैं। संगीत के द्वारा सभी को साथ जोड़ने का प्रयास है। ये हमारा कर्तव्य है, उपकार नहीं। घोष वादक को संगीत बजाने के लिए कोई मुआवजा नहीं मिलता है। विभिन्न आयु वर्ग और अलग-अलग चाल ढाल के ये वादक पेशेवर वादक नहीं है। ये वादन राष्ट्र कार्य के लिए योग्य बनाता है। अपनी जेब से खर्च करके राष्ट्र हित में संघ योजना के अनुसार वादन किया जाता है। ये वादक अपने मनोरंजन या बड़प्पन के लिए नहीं वरन राष्ट्र की सेवा के लिए संगीत रचना करते है। राष्ट्र हमें बहुत कुछ देता है, हमें भी कुछ देना चाहिए। हम जो सीखते हैं उसे देश हित में लगा देते है।
डॉ. भागवत जी ने कहा कि पहला संस्कार बिना स्वार्थ कुछ देना होता है। दुनिया कहती थी हम महफ़िल में गा सकते हैं, सामूहिक वादन-गायन कर सकते हैं, लेकिन हमारा संगीत शौर्य, बल, वीर्य पैदा करने वाला नहीं है। ये बात हमें खलती थी कि प्रांगण में जमा हो कर रण संगीत गायन की परंपरा हमारे यहां नहीं है। हमारे पास संचलन के लिए संगीत नहीं था। हमने अंग्रेजों से रचनाएं उधार ली। प्रांगणिक संगीत की सूक्ष्म बातें तैयार की और फिर भारतीय रागों पर आधारित रचनाएं तैयार की। भारतीय राग और ताल में लिपिबद्ध संगीत हमारे द्वारा तैयार किया गया। भारत विश्व में कहीं से भी सभी अच्छी बातों को स्वीकार करता है लेकिन किसी पर निर्भर नहीं होता है । तीसरी बात आत्मसंयम है। जैसा निर्धारित किया जाता है, वैसे सामूहिक रुप से बजाया जाता है। वादक स्वयं की इच्छा से वादन नहीं कर सकता। हमें संयम रखते हुए सामूहिक रुप से संगीत तैयार करना होता है।
सरसंघचालक जी ने कहा कि संगीत समरसता का संस्कार है। सुर और ताल मिल कर चलते हैं तभी संगीत तैयार होता है। सबके सामूहिक हितों का ध्यान रखते हुए समरसता के साथ संस्कार पैदा किया जाता है। भारत को विश्व गुरु बनना है। हम सब हिंदू हैं, हमारा हिंदू राष्ट्र है। ये नाम किसी जाति के नाम से पैदा नहीं हुआ वरन् "वसुधैव कुटुंबकम", संपूर्ण विश्व का भला करने के सिद्धांत पर चलने के कारण हमें हिन्दू नाम मिला है।विश्व में कई राष्ट्रों की अलग पेचान है लेकिनएकमात्र अखंड भारत की ही पहचान हिंदू नाम से है। हमारी संस्कृति संपूर्ण विश्व का कल्याण चाहने वाली संस्कृति है। सभी के प्रति अपनत्व का भाव रखना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि संघ का मानना है कि समानता आनी चाहिए। दुर्भाग्य से हमारे यहां जातिभेद और अस्पृश्यता का कलंक है। इस कारण एक बड़ा हिस्सा पिछड़ गया। इस बुराई को जड़ मूल से बाहर फेंकने की जरूरत है। बाबा साहब का मानना था कि देश में स्वतंत्रता और समता लानी है तो समानता रखनी होगी। हमारा भी मानना है कि बंधुता, समरसता, मानवता का रूप है। संघ ने भारत के संगीत की सामर्थ्य जानते हुए ही रणसंगीत को अपने से जोड़ा है।
उन्होंने कहा कि देश की उन्नति का काम करने का ठेका किसी ने भी नहीं लिया है। ये काम सभी का है। हम सभी को इसके लिए प्रयास करने होंगे। हमें संस्कारों को ग्रहण कर सबल, सुरक्षित और सामर्थ्यवान देश बनाने का प्रयास करना होगा । जहां संस्कार नहीं वहां शक्ति का दुरुपयोग होता है। लेकिन संस्कार युक्त शीलवान पुरुष, पीड़ा हरने का काम करते हैं, सुरक्षा का काम करते हैं। उन्होंने स्वयंसेवकों और आमजन से संपूर्ण दुनिया को सुख संपन्न बनाने और भारत को विश्व गुरु बनाने का प्रयास करने का आह्वान किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सेवानिवृत्त आई.ए.एस. अधिकारी श्री बी.एल. नवल ने कहा कि संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की सामाजिक न्याय की सोच को अपना कर ही भेदभाव रहित एवं समरस भारत का निर्माण किया जा सकता है।
विशिष्ट अतिथि उद्योगपति श्री किशोर रूंगटा ने कहा कि भारत एक प्राचीन राष्ट्र है जिसकी नींव विविधता में एकता के सांस्कृतिक आधार पर बनी है। उन्होंने कहा कि हिन्दू जीवन पद्धति ही देश को विकास के मार्ग पर ले जा सकती है और हिंदू समाज जागरण का कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बखूबी कर रहा है।
कार्यक्रम को देखने के लिए स्वयंसेवकों समेत हजारों जयपुरवासी उपस्थित थे| ।स्वर गोविन्दम कार्यक्रम में स्वयंसेवकों ने शंख, वंशी, आनक, झांझ, सेक्सोफोन, ट्रम्पेट, बास ड्रम आदि वाद्यों पर मीरा, चेतक, शिवरंजनी, किरण, अनूप, दुर्गा आदि अनेक धुनों का विभिन्न रचनाएं बजाते हुए प्रदर्शन किया। प्रस्तुति के साथ विभिन्न व्यूह रचनाओं का प्रदर्शन भी किया गया। एक सुर, एक लय, एक ताल पर वाद्यों का सामूहिक वादन सुन समारोह में उपस्थित सभी श्रोता रोमांचित हो उठे।
वीरांगनाओं का किया सम्मान
कार्यक्रम में श्री भागवत जी ने वीरांगना श्रीमती कान्ता यादव, श्रीमती सुमित्रा देवी, श्रीमती निशा लाल एवं श्रीमती संपत कंवर और वीर माताओं श्रीमती मेरी कुट्टी थॉमस एवं श्रीमती लक्ष्मी देवी बुंदेला को भारत माता का चित्र, शॉल और श्रीफल प्रदान कर सम्मानित किया।
पथसंचलन में जयपुर प्रांत से आये हुए 1276 घोष वादक स्वयंसेवक सम्मिलित हुए। मार्ग में हजारों नगर वासियों ने संचलन का पुष्पवर्षा कर स्वागत किया।