राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने सामाजिक समरसता का मूलमंत्र बताते हुए कहा कि सुख की चाह में हम जो बटोर रहे हैं, उसमें से जरूरतमंदों को कुछ बांटने की जरूरत है. भारत का चेहरा कोई पंथ या संप्रदाय नही ं हो सकता , बल्कि हमारी चिर पुरातन संस्कृति ही हमारी पहचान है. उपरोक्त विचारों को हम आत्मसात करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत हमें अलग नही ं कर सकती , हरा नही ं सकती. वर्तमान में दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं.
सरसंघचालक जी स्थानीय विज्ञान महाविद्यालय के प्रांगण में आयोजित मकर संक्रांति उत्सव में उपस्थित स्वयंसेवकों तथा नागरिकगणों को संबोधित कर रहे थे. मकर संक्रांति के पर्व का महत्व बताते हुए सरसंघचालक जी ने कहा कि प्रकृति भी अपना स्वभाव सृष्टि के हित में बदलती है , हमें भी अपना स्वभाव गरीबों के हित में बदलना चाहिए , जैसे जरूरतमंदों की दान देकर मदद करना. बच्चों में दान देने की आदत डालनी चाहिए. उन्होंने कहा कि दुनिया में इन दिनों अपने-अपने पंथ और संप्रदाय को ही सर्वोपरि बताने की प्रवृति बढ़ी है जो गलत और अस्वीकारणीय है. भारत में भी अनेक जातियां , बोलियां और देवी-देवता हैं , लेकिन वह हमारी पहचान नही ं हैं. 40 हजार सालों से भारत की पहचान उसकी संस्कृति , उसके पूर्वज हैं.
डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि आदिवासी भी हमारे अपने हैं. उनका सर्वस्व विकास करने तथा अपने साथ लेकर चलने की चिंता भारतीय समाज को करनी चाहिए. उन्होंने सावधान किया कि जब-जब हम भारत की लिए लड़े , हमारी एकता कायम रही , हमें कोई जीत नही ं सका . लेकिन जैसे-जैसे हम पंथ , संप्रदाय , भाषा इत्यादि को लेकर ल ड़ने लगे , हमारा देश टूटने लगा. हमें हमारे पूर्वजों पर अभिमान होना चाहिए. राजनीति तोड़ती है , लेकिन समाज और संस्कृति व्य क्ति को जोड़ती है. उन्होंने कहा कि हजार वर्षों से अफगानिस्तान से बर्मा तक चीन की तिब्बत की ढलान से श्रीलंका के दक्षिण तक जितना जनसमूह रहता है , उतने जनसमूह का डीएनए यह बता रहा है कि उनके पूर्वज समान हैं. यह हमको जोड़ने वाली बात है. आज हम एक दूसरे को भूल गए हैं , रिश्ते-नाते भूल गए हैं , आपस में एक दूसरे का गला पकड़कर झगड़ा भी कर रहे हैं , लेकिन वास्तविकता ये है कि हम एक ही घर के लोग हैं. हम समान पूर्वजों के वंशज हैं.
कार्यक्रम की अध्यक्षता सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश उपाध्यक्ष मोहन सिंह टेकाम जी ने की. अपने संक्षिप्त उद ् बोधन में उन्होंने रानी दुर्गावती को याद करते हुए कहा कि राष्ट ्र हित में आदिवासियों ने हमेशा अपना बलिदान दिया है . लेकिन आज वह उपेक्षित और शोषित बना हुआ है. नतीजन बस्तर के भोले-भाले आदिवासियों को राष्ट्रविरोधी श क्ति यां बरगला रही हैं , लेकिन वे अपने मंसूबे में कामयाब नही ं हो सकती ं .
सामाजिक समरसता स म् मेलन की शुरूआत स्वयंसेवकों द्वारा व्यक्तिगत , सामूहिक गीत , सुभाषित व घोष-दल की प्रस्तुतियों से हुई. मु ख्य उद ् बोधन के पूर्व महानगर संघचालक उमेश अग्रवाल जी ने मंच पर उपस्थित अतिथियों का स्वागत पुस्तकें देकर किया , तत्पश्चात महानगर कार्यवाह टोपलाल जी ने अतिथियों का परिचय करवाया. मंच पर विशिष्ट अतिथि के रूप में क्षेत्र संघचालक अशोक सोनी जी , प्रांत संघचालक बिसरा राम यादव जी उपस्थित थे. कार्यक्रम में अखिल भारतीय सह-संपर्क प्रमुख अरूण कुमार जी , अ.भा.कार्यकारिणी सदस्य हस्तीमल जी , क्षेत्र प्रचारक अरूण जैन जी जी , क्षेत्र कार्यवाह माधव विद्वांस जी सहित अन्य उपस्थित थे.