प्रबुद्ध नागरिक विचार गोष्ठी - पंचकूला

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ    14-Feb-2018
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पंचकूला: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी ने कहा कि हिन्दू उदार व सार्वभौम चिंतन है और इसे सांप्रदायिक सीमाओं में बांधना इसके साथ अन्याय होगा. सरकार्यवाह जी बुधवार (07 फरवरी) को पंचकूला के सेक्टर-2 स्थित श्रीराम मंदिर में आयोजित प्रबुद्ध नागरिक विचार गोष्ठी में संबोधित कर रहे थे. गोष्ठी की अध्यक्षता लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल जी ने की. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उत्तर क्षेत्र संघचालक प्रो. बजरंग लाल गुप्त जी और कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि लेफ्टिनेंट जनरल केजे सिंह जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए.

सरकार्यवाह जी ने पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सदभाव पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि आदि काल से भारत की पहचान हिन्दू धर्म से ही रही है और यह धर्म प्रकृति प्रेमी तथा हर जीव में ईश्वरीय तत्व को मानने वाला है. उन्होंने उपनिषदों और गीता का उद्धरण देते हुए कहा कि जाति के आधार पर मनुष्यों का आपस में भेदभाव करना धर्म के मूल तत्वों के खिलाफ है. जातिवाद ने समाज का बड़ा नुकसान किया है , इसलिए हमें इन संकीर्णताओं से ऊपर उठ कर देशहित में सोचना चाहिए. हिन्दू धर्म ‘एकं सत् विप्रा बहुधा वदंति’ के सिद्धांत को मानता है. इसका अर्थ यह है कि यहां विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी के साथ – साथ एक - दूसरे की भावनाओं, मूल्यों का सम्मान करने की भी परंपरा रही है. भारत हिन्दू राष्ट्र है और इसके उत्थान व पतन के लिए हिन्दू समाज ही जिम्मेदार है.

सुरेश भय्याजी जोशी ने कहा कि हम प्रकृति के पूजक हैं और हमने प्रकृति को देवता के रूप में देखते हुए उसकी पूजा की है. इसलिए धर्म पूजा के नाम पर नदियों को दूषित करने की इजाजत नहीं देता. उन्होंने कल्पवृक्ष का वर्णन करते हुए कहा कि इस नाम का कोई वृक्ष कहीं नहीं है , लेकिन हमारे पौराणिक आख्यानों में इसका वर्णन मिलता है. हमने पूरे वनस्पति जगत को कल्पवृक्ष मानते हुए उसे जीवन का अंगभूत घटक समझा है. इसी प्रकार कामधेनु गाय का उदाहरण देते हुए कहा कि यह शब्द हिन्दू धर्म के जीव-जंतुओं के प्रति प्रेम का ज्ञान करवाता है.

उन्होंने कहा कि असहिष्णुता की शुरुआत विचारों के कट्टरपन से आती है. जब कोई मजहब सिर्फ अपने को श्रेष्ठ और दूसरे को तुच्छ समझने लग जाए तो दिक्कत खड़ी होती है. इस्लाम और ईसाई मजहब के मतावलंबियों ने यही किया है. ये लोग सिर्फ और सिर्फ अपना ही मार्ग श्रेष्ठ समझते हैं, यहीं से असहिष्णुता की शुरुआत होती है. उन्होंने कहा कि भारत की तुलना चीन , अमेरिका, ब्रिटन आदि से नहीं करनी चाहिए, बल्कि भारत को भारत ही रहने देना चाहिए. उन्होंने प्रबुद्ध नागरिकों से भारतीय भाषाओं को बचाने का विशेष आह्वान किया. चाहे कितनी ही भाषाएं सीखें, लेकिन भारतीय भाषाओं की शुद्धता खराब नहीं होनी चाहिए. इसके साथ ही आर्थिक जगत की चिंता करते हुए स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि अनेक देश भारत को एक बाजार के तौर पर प्रयोग करना चाहते हैं, इसलिए देशवासियों का कर्तव्य बनता है कि वे भारतीय उत्पादों का प्रयोग कर यहां की अर्थव्यस्था को मजबूत करें.