सेवा भाव से समाज को सबल और पूरे विश्व को कुटुंब बनाना है – डॉ. मोहन भागवत जी

सरसंघचालक जी का समरसता के लिए सेवा पथ पर अग्रसर होने का आह्वान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ    07-Apr-2023
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जयपुर, 7 अप्रैल. पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि जब देश का सर्वांग परिपूर्ण और स्वस्थ होगा, तभी भारत विश्वगुरु बनेगा. हमें सेवा भाव से समाज के हर अंग को सबल और पूरे विश्व को कुटुंब बनाना है. ऐसा तभी संभव है, जब सेवा का कार्य समाजव्यापी अभियान बन जाए. हमें ऐसा प्रयास करना है.
 
पूजनीय सरसंघचालक जी ने शुक्रवार को जयपुर के जामडोली स्थित केशव विद्यापीठ में तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेवा भारती के सेवा संगम के उद्घाटन समारोह में संबोधित किया. उन्होंने कहा कि लोग अपनी चुनौतियों और समस्याओं को समाप्त कर, सम्पूर्ण विश्व को भक्ति, ज्ञान और कर्म का उदाहरण प्रस्तुत करें. साथ ही सेवा करने वाली सज्जन शक्ति एक समूह बनकर परस्पर मिलकर चले. इससे हम अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकेंगे.
 
उन्होंने स्मरण करवाया कि सेवा का मंत्र हमारे देश में बहुत पहले से विद्यमान रहा है. सेवा का भाव संवेदना प्रधान है. हालांकि संवेदना मानव से इतर पशुओं में भी होती है और अक्सर यह परिलक्षित भी होता है, लेकिन संवेदना में कृति का भाव केवल मनुष्य तक ही सीमित है. उन्होंने कहा यह कृति ही करुणा है. सी-20 ग्रुप की बैठक का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी करुणा को आधार बनाना चाहिए.
 
उन्होंने कहा कि कभी-कभी सेवा के बाद अहंकार आना स्वाभाविक है, लेकिन यदि सेवा भाव निरंतर बना रहता है, तो अहंकार स्वत: समाप्त हो जाता है. इसी निरंतरता पर जोर देते हुए कहा कि मेरे पास जो है, वह सबके लिए है. सबमें मैं हूं और मुझमें सब हैं. सेवा द्वारा सबको अपने जैसा बनाना, हमारा परम उद्देश्य होना चाहिए. इससे समाज का हर भाग स्वावलंबी होगा और देश में कोई पिछड़ा अथवा दुर्बल नहीं रहेगा.
 

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उन्होंने कहा कि संघ की स्थापना से ही स्वयंसेवक सेवा कार्य कर रहे हैं. सेवा की मानसिकता सब में होती है, बस उसे जगाना पड़ता है. हम प्रयास कर रहे हैं कि सेवा के माध्यम से समाज स्वस्थ हो जाए. इससे पहले हमें स्वस्थ होना पड़ेगा. हमारे समाज में यदि कोई पीछे है तो यह हमारे लिए अच्छी बात नहीं है. सबको समान और अपने जैसा मानकर ही समाज को आगे बढ़ा सकते हैं. कमजोर लोगों को ताकत देनी है.
 
उन्होंने कहा कि हमारे देश में एक घुमंतू समाज है, जिसने देश की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी. वो झुका नहीं. घुमंतू समाज के लोग कहीं न कहीं घूमते रहते हैं. अंग्रेजी शासकों ने उनकी पहचान मिटा दी. दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता के बाद भी उनकी वही स्थिति रही. उनके पास कोई मतदाता पहचान पत्र नहीं है, राशन कार्ड नहीं और डोमिसाइल भी नहीं है. संघ के सेवा कार्य वहां भी चल रहे हैं.
उद्घाटन सत्र में अतिथियों ने सेवा साधना पत्रिका का लोकार्पण किया. पत्रिका का विषय स्वावलंबी भारत रखा गया है.