धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के 150वें जन्म वर्ष पर माननीय सरकार्यवाह जी का वक्तव्य

31 Oct 2025 17:51:05
  
birsa munda
 
 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक
30-31 अक्टूबर-1 नवम्बर 2025, जबलपुर
 
 
माननीय सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले जी का वक्तव्य

धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा का 150 वाँ जन्म वर्ष
 
भारत के गौरवशाली स्वाधीनता संग्राम में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों व योद्धाओं की एक दीर्घ परंपरा रही है और उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है। भगवान बिरसा मुंडा का इस स्वतंत्रता संग्राम के श्रेष्ठतम नायकों, योद्धाओं में विशेष स्थान है। 15 नवंबर 1875 को उलीहातु (झारखंड) में जन्मे भगवान बिरसा का यह 150 वाँ जन्म वर्ष है। अंग्रेजों और उनके प्रशासन द्वारा जनजातियों पर किए जा रहे अत्याचारों से त्रस्त होकर उनके पिता उलीहातु से बंबा जाकर बस गए। लगभग 10 वर्ष की आयु में उन्हें चाईबासा मिशनरी स्कूल में प्रवेश मिला। मिशनरी स्कूलों में जनजाति छात्रों को उनकी धार्मिक परंपराओं से दूर कर ईसाई मत में मतांतरित करने के षड़यंत्र का उन्हें अनुभव आया। मतांतरण से न केवल व्यक्ति की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक चेतना अवरुद्ध होती है बल्कि धीरे-धीरे समाज की अस्मिता भी नष्ट हो जाती है। केवल 15 वर्ष की आयु में ईसाई मिशनरियों के षडयंत्रों को समझते हुए उन्होंने समाज जागरण के द्वारा अपनी धार्मिक अस्मिता और परम्पराओं की रक्षा के लिए संघर्ष प्रारंभ कर दिया। मात्र 25 वर्ष की आयु में भगवान बिरसा ने उनके समाज में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की लहर पैदा कर दी जो स्वयं विकट परिस्थितियों से ग्रस्त था। ब्रिटिश शासन द्वारा प्रशासनिक सुधार के नाम पर वनों का अधिग्रहण करते हुए जनजातीय समाज से भूमि का स्वामित्व छीनना तथा जबरन श्रम नीतियां लागू करने के विरोध में भगवान बिरसा ने व्यापक जन आंदोलन खड़ा किया। उनके आंदोलन का नारा "अबुआ दिशुम-अबुआ राज" (हमारा देश-हमारा राज) युवाओं के लिए एक प्रेरणा मंत्र बन गया, जिससे हजारों युवा "स्वधर्म" और "अस्मिता" के लिए बलिदान देने हेतु प्रेरित हुए। जनजातियों के अधिकारों, आस्थाओं, परंपराओं और स्वधर्म की रक्षा के लिए भगवान बिरसा ने अनेक आंदोलन व सशस्त्र संघर्ष किए। अपने पवित्र जीवन लक्ष्य के लिए संघर्ष करते हुए वह पकड़े गए और मात्र 25 वर्ष की अल्पायु में कारागार में दुर्भाग्यपूर्ण और संदेहास्पद परिस्थिति में उनका बलिदान हुआ।
 
समाज के प्रति अपने प्रेम और बलिदान के कारण संपूर्ण जनजाति समाज उन्हें देव स्वरूप मानकर धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा कहकर श्रद्धान्वत होता है। भारत सरकार ने संसद भवन परिसर में उनकी प्रतिमा स्थापित कर उनका समुचित सम्मान किया है। प्रतिवर्ष 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा का जन्मदिन "जनजाति गौरव दिवस" के रूप में मनाया जाता है। उनका बलिदान स्वाधीनता संघर्ष में जनजातियों के महती योगदान का उदाहरण बनते हुए संपूर्ण राष्ट्र के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया है। धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक परम्परा, स्वाभिमान और जनजातीय समाज की अस्मिता की रक्षा हेतु भगवान बिरसा मुंडा के जीवन का संदेश आज भी प्रासंगिक है।
 
वर्तमान काल में विभाजनकारी विचारधारा के लोगों द्वारा भारत के संदर्भ में जनजाति समुदाय को लेकर एक भ्रांत और गलत विमर्श खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे समय में भगवान बिरसा मुंडा की धार्मिक और साहसिक पराक्रम की गाथाएं अनेकानेक भ्रांतियों को दूर करते हुए समाज में स्वबोध, आत्मविश्वास और एकात्मता को दृढ़ करने में सदैव सहायक सिद्ध होगी। भगवान बिरसा मुंडा की 150 वीं जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयंसेवकों सहित संपूर्ण समाज को आवाहन् करता है कि भगवान बिरसा मुंडा के जीवन-कर्तृत्व और विचारों को अपनाते हुए "स्व बोध" से युक्त संगठित और स्वाभिमानी समाज के निर्माण में महती भूमिका का निर्वहन करें।
 

ABKM jabalpur 
 
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